गाइये रामइयो दातार।
सब सुख आपै रोर कांपै, निरधारां आधार॥
नारद सारद द्वारे गावे, कीरति करै कै बार।
नाथ तू अनाथ बंधु, दालिद भंजनहार॥
अखें अमरपद च्यारि पदारथ, देत न लावे बार।
मैं अस करिनें गाइयो, कमला नों भरतार॥
दूझै सदा भगति कै होझै, पंडित नांहि धार।
भगति भूरि दान आपै, मुकति पाडी लार॥
पीलीपहु आराधियो, म्हारा समरथ सिरजनहार।
'बखना' दरबार पहाऊ बोलै, वासन्यों करतार॥