एक हरि एक हरि, एक हरि साचा।

अलख भजि अलख भजि, सुफल करि वाचा॥

अविनासी पूरणब्रह्म, तहाँ मन दीजै।

राम भजि राम भजि, परम गति लीजै॥

गाइ गोपाल सति, सुमरि मन रामा।

काल लागै नहीं, सरै सब कांमा॥

एक सूँ एक होइ, निरभै मतै रहिये।

भन हरीदास गुर ग्यांन गहि, अगहि यूँ गहिये॥

स्रोत
  • पोथी : महाराज हरिदासजी की वाणी ,
  • सिरजक : हरिदास निरंजनी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा ,
  • संस्करण : प्रथम
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