समझ मन आयु बीत गई सारी।
तें करी न भली तिहारी॥
बालपणों हस खेल बितायो, गाफल चाल गिंवारी।
तरुन भयो तरुनी संगत तू, अन्धाधुन्ध अपारी॥
रात दिवस होवे मन राजी, निरख पराई नारी।
पढ़न पढ़ावन मोसर पायो चूक गयो विभचारी॥
उद्यम छोड रह्या अन उद्यम, आठूंहिं पहर अनारी।
रोटी रोटी करतो रोवे, मूढ़ महा झकमारी॥
चन्द वदन गुनखांन चतुर चित, परहर अपनी प्यारी।
वेश्या संग मोल विन बालम, बिकगो बड़ो विकारी॥
सत्य पुरुष की सीख श्रवण सुन, लपलप लपत लबारी।
काम क्रोध के कन्द छेक कर, धृती क्षमा नहीं धारी॥
और की ऐब उघारन आतुर, अपनी और अगारी।
अपनी ऐब आप के अन्तस, निलज कबू न निहारी॥
सुन सुन के डारी सारी सुन, पागल लाख प्रकारी।
ऊमरदांन विचार बिनां अब, कछुह न लागे कारी॥