भजन कर राम दुहाई रे॥
जनम अमोला तुझ दिया नर देही पाई रे।
देही कूँ या ललचहीं सुर नर मुनि भाई रे॥
सनकादिक नारद रटै चहूँ वेदा गाई रे।
भक्ति करै भवजल तरै सतगुरु सिरनाई रै॥
मिरगा कठिन कठोर है कहो कहाँ डहकाई रे।
कस्तूरी है नाभ में बाहर भरमाई रे।
राजा बूड़े मान में पंडित चतुराई रे॥
ज्ञान गली मे बंक है तन धूर मिलाई रे।
उस साहब कूं याद कर जिन सौज बनाई रे॥
देखत ही हो जात है परबत से राई रे॥
कंचन काया छार होय तन ठोंक जराई रे।
मूरख भोंदू बाबरे क्या मुकत कराई रे॥
चमरा जुलहा तक गये और छीपा नाई रे।
गनिका चढ़ी बिमान मे सुर्गापुर जाई रे॥
स्योरी भिलनी तर गई और सदन कसाई रे।
नीच तरे तो सूँ कहूँ नर मूढ़ अन्याई रे॥
सबद हमारा साँच है और ऊँट की बाई रे।
धुएं कैसे धौलहर तिहुं लोक चलाई रे॥
कलबिष कसमल सब कटै तन कंचन काई रे।
ग़रीबदास निज नाम है नित परबी न्हाई रे॥