बंदे देख ले निज मूल वे।

कला कोटि असंख धारा अधर निर्गुन फूल वे॥

है अबंच असंग अवगत अधर आदि अनाद वे।

कमल मोती जगमगै जहं सुरत निरत समाध वे॥

भवन भारी रवन सोभा भजो राम रहीम वे।

साहब धनीं कूँ याद कर जप अलह अलख करीम वे॥

मादर पिदर है संग तेरे बिछुरता नहिं पलक वे।

क़ायम कला क़ुरबान जाँ ख़ालिक बसे है ख़लक वे॥

ख़ालिक धनी है ख़लक में तूँ झलक पलक समीप वे।

अरस आसन है बिहंगम अधर चसमें जोय वै॥

बैराग में इक घाट है उस घाट में इक द्वार है।

उस द्वार में इक देहरा जहं ख़ूब है इक यार वे॥

सूभ है दिलदार साहब देखना नहिं भूल वे।

ग़रीब दास निवास नग पर भई सेजां सूल वे॥

स्रोत
  • पोथी : हिंदी संतकाव्य-संग्रह ,
  • सिरजक : ग़रीबदास ,
  • संपादक : गणेशप्रसाद द्विवेदी ,
  • प्रकाशक : हिंदुस्तानी एकेडेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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