आज आतम राम पाया, मन में घणो हुलास।
पल-पल वारूं वारणा, घणा दिनां री आस।
पाँच पचीस मिल मंगल गावे, सुरति होगी खास।
एको एक मैं निरख्या, दूजा ना दिख्या पास।
निरखता निज पड़ी पारख, खुदो खुद परकास।
पीव ऐड़ा परस्यां खुद, ग्यान रो ही वास॥
आत्म अेक जद जोविया, धरम करम सब नाश।
पारब्रह्म ने जाणंता ही, सगला मिट्ग्या त्रास॥
देह में दीदार पाया, अचल रचाया रास।
जीव सीव मिल एक हुया जद, फूली रही ना सेस॥