राजस्थानी सबदकोस

राजस्थानी सबदां रो अरथ पिछाणन अर जाणन रै वास्तै राजस्थानी डिक्शनरी में अठै आपणों सबद लिखो अर ई शब्दकोश रै जरिये जुड़ो।

भैरव रो राजस्थानी अर्थ

भैरव

  • शब्दभेद : सं.पु.

शब्दार्थ

  • तेल और सिंदूर से पूजे जाने वाले एक देवता, जिनकी उत्पत्ति शिव से मानी जाती है। वि.वि.--भैरव की उत्पत्ति के विषय में ऐसी पौराणिक कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु गर्वोद्धत हुए और उन्होंने वाद-विवाद में शिव की निंदा करके उनका अपमान किया। तब भगवान रुद्र की कृपा से एक महान्‌ ज्योति प्रकट हुई, जिसमें से महाकाल भैरव की उत्पत्ति हुई। इस भैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे मुख को, जिसने शिव की निन्दा की थी काट डाला। परिणामत: वह सिर भैरव के हाथ के चिपक गया। ब्रह्मा का सिर कटने के साथ एक ब्रह्म-हत्या नामक कन्या का जन्म हुआ, जिसने भैरव का पीछा किया। चूंकि शिव ने भैरव को काशी का अधिपति बनाया, अत: वह उस कन्या से पीछा छुड़ाने के लिए नाना तीर्थों से घूमता हुआ काशी पहुंचा। वहां वह कन्या पाताल में प्रवेश कर गई एवं भैरव के हाथ से भी सिर छूट गया, अत: यह स्थान कपालमोचनतीर्थ नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के दक्षिण नैत्र से भयंकर, संहार, काल, असित, क्रोध, भीषण, महाभैरव एवं खट्‌वांग नाम के अष्टभैरव उत्पन्न हुए। कोई लोगों का मत है कि वीरभद्र और भैरव एक ही हैं परन्तु वास्तव में दोनों अलग-अलग हैं। वीरभद्र के अनुयायी वीरों की संख्या 52 है एवं भेरव 64 माने गए हैं जिनकी पूजा शनिवार या रविवार को की जाती है तथा इनका स्वरूप उग्र माना जाता है एवं साथ में दो कुत्ते इनके आगे सेवक के रूप में माने जाते हैं। 64 भैरवों की नामावली निम्न प्रकार है--
  • उरध केस (उर्ध्वकेश)
  • विरूपाक्ष