नटरू छोरो
गौड़बाजीयै रो...
साल में बस
महीनै खण आवै
स्हैर।
पतळी जेवड़ी माथै
नाचती पगां उभाणी
बै'न सारू बजावै ढोल...
ढोल री धमक माथै
नाचै भूखो पेट
आस रो लांबो बांस
हाथ में थाम्या।
उदास है नटरू
भीड़ री जेब सूं
नीं झड़कै अबै पइसा
नाच-नाच थकणो,
थक-थक नाचणो
भूख री भखारी
राखणा पोटापोट सपना!
दुख माई बाप
अेक-आध पुलिसियै री थाप
नटरू सहवै बारहूं मास
ढीट नीं है नटरू,
भूखो है नटरू,
सूखो है नटरू...
मरतै भरोसै रो
छेकतो बिखो है
नटरू!
नटरू कविता है कै
कविता है नटरू..!