सत्यप्रकाश जोशी
ख्यात कवि-सम्पादक। राजस्थानी कविता मांय आधुनिक बोध सारु पिछाण। 'बोल भारमली' पोथी पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार।
ख्यात कवि-सम्पादक। राजस्थानी कविता मांय आधुनिक बोध सारु पिछाण। 'बोल भारमली' पोथी पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार।
जन्म: 20 Mar 1926 | जोधपुर,भारत
निधन: 26 Apr 1990
राजस्थानी भासा री आधुनिक कविता नैं नूंवो मोड़ देवण वाळै कवियां में सत्यप्रकाश जोशी रो नांव सिरमौर है। वांरो जनम जोधपुर नगर रै अेक सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में चैत सुदी सातम, संवत् 1984 (20 मार्च, 1926) नै हुयो। वां रा पिताजी पं. मोहनलालजी री संगीत अर कविता में घणी रुचि होवण रै कारण घर में कवितावां रो वातावरण मिल्यो। जोधपुर रै जसवंत कॉलेज सूं इणां अेम. अे. पास करी अर आगै मुंबई सूं नाट्यशास्त्र में डिप्लोमा लियो। वां भणाई रै दिनां में ई कविता लिखणी सरू करी अर मुंबई नैं ईज आपरो कर्मक्षेत्र बणायो। मुंबई री मोकळी कॉलेजां में हिंदी रा प्राध्यापक रैया। इणी पद सूं जोशी 1987 में सेवानिवृत्त हुया।
सत्यप्रकाश जोशी आपरै विद्यार्थी जीवण में ईज हिंदी अर राजस्थानी रे मंचीय कवि रै रूप में थरपीजग्या हा। गीत अर कवितावां रै पाठ री आपरी अेक विसेस सैली ही, जिण सूं आप घणा ई लोकचावा हुया। 26 अप्रैल, 1990 नै जयपुर में श्री जोसी रो सुरगवास होयग्यो।
श्री सत्यप्रकाश जोशी री काव्य-जात्रा 1945 सूं सरू हो जावै। इणां री हिंदी में रची कविता 'जय होगी उनकी रण में' नैं जोधपुर महाराजा उण समै चाळीस रुपियां रो पुरस्कार दियो अर 'राजम्हैल' कविता लिखण रै कारण तो लोग तरवारां लियां उणां रो माथो बाढण नै त्यार होयग्या।
श्री जोशीजी री पैली काव्य-पोथी 'सहस्रधारा' 1956 में छपी जिनमें हिंदी अर राजस्थानी कवितावां संकलित है।
सन् 1960 में इणां रो मुक्त छंद रो अेक खंडकाव्य 'राधा' प्रकासित हुयो। उणरै पछै 'दीवा कांपै क्यूं', 'बोल भारमली', 'गांगेय', 'आहुतियां', 'आगत- अणागत', 'पुजापो', 'लस्कर ना थमै', 'सोन मिरगला', 'जोड़ायत' आद काव्यां री रचना करी। इणरै अलावा अंग्रेजी भासा रै विद्वान वाल्ट डिजने रै बाल उपन्यास 'बांबी' रो राजभासा में अनुवाद कर्यो अर राजस्थानी री चावी मासिक पत्रिका 'हरावळ' रो दस बरसां तांई संपादण-प्रकासण कर्यो।
वांरी इण साहित्य-सेवा सारू राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर अर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रै अलावा केई दूजी संस्थावां सूं वै सम्मनित हुया। वांरी पोथी 'बोल भारमली' नैं केंद्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली सूं पुरस्कार मिल्यो। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी, बीकानेर इणां पर 'जागती जोत' रो अेक विशेषांक ई प्रकासित कर्यो।
श्री जोशीजी राजस्थानी भासा रा आधुनिक भावबोध रा प्रगतिशील कवि मान्या जावै। इणां रै काव्य संसार मांय प्रवेस करां तो इणां रा दो रूप साम्हीं आवै- अेक गीतकार रै रूप में अर दूजो प्रबंधकार रै रूप में। 'दीवा कांपै क्यूं' में श्री जोशीजी 39 गीतां- कवितावां रो संग्रै कर्यो है। अै सारी कवितावां-गीत 1913 सूं 1962 रै बिचै रा है। इण काव्य-कृति री 'मेव' नांव री रचना घणी चावी हुयी। इणमें महानगरां रो जीवण अर 'देस' मरुधर री सूखी धरती रा सांगोपांग चित्राम उकेर्या है। इणी संग्रै री 'सोवण माछळी' कविता अेक मछुवारै रै जीवण नैं लेय’र मिनखजूण री पीड़ा अर संवेदणा थरपायी है। जोशीजी री 'बोल भारमली' पूरण पुरुष री तलास में नारी री कथा कैवती अेक आछी काव्य-रचना है। इण मांय नारी री सूक्ष्म मनोवैज्ञानिकता रो चित्रण हुयो है। नारी नैं इण बारीकी सूं समझण वाळा मिनख ईज नारी री सींव बतावै। नारी-मुगती आंदोलण री मधुर गूंज इण काव्य में सुणाई देवै है औ इतिहास री अेक घटणा रो सबळ काव्य है।
'राधा' वांरो रच्यो खंडकाव्य है। इणरै मांय राधा-क्रिसण री प्रणय-कथा बीस न्यारी-न्यारी कवितावां अर मुगत छंद मांय है। हरेक गीत रो अेक निकेवेळौ सिरैनांव है। आ अतुकांत सैली में रचीजी अेक लूंठी काव्य-कृति है। इण मांय राधा रो अेक न्यारो अर निराळी रूप साम्हीं आयो है। नारी रै सुभाविक गुणां सूं पूरमपूर होवता थकां भी उणनैं इण बात रो घणो गुमेज है कै बा लोक कल्याणकारी क्रिसण री प्रेमिका है। पण मूळ रूप सूं इण मांय जुध-विरोधी भावना रो प्रभावसाली चित्राम उकेर्यो है।
'जोड़ायत' अेक लांबी कविता है जिनमें 'नरबद' अर 'सुप्यारदे' रै प्रेम-प्रसंग रो कल्पना-चित्रण है तो 'गांगेय' में कवि भीष्म पितामह नैं नूंवी दीठ सूं देखै। 'लस्कर ना थमे' में ब्यांव आद रा गीत है। ' आगत- अणागत' में भांत-भांत री कवितावां रो संग्रै है जिकी इत्ती लूंठी है के राजस्थानी कविता नैं 21वीं सताब्दी में ले जावण नै बळ देवै
सत्यप्रकाश जोशी रो रचना-संसार घणो वैभवसाली, अनुपम अर अनूठौ है। वांरी कवितावां में विषय री विवधता, संवेदणा री गैराई अर आधुनिक चिंतन री दीठ मिले। इणां री कविता में मध्यकाल रै कवियां री भांत छंद-अलंकार रो घणो प्रयोग नीं मिलै। राजस्थानी काव्य-शिल्प अर भासा नै जिको नूंवो मुहावरो वां दियो, उण सूं वांरी न्यारी पिछाण बणी, जिणनैं राजस्थानी-प्रेमी मोकळै बरसां तांई याद राखसी।