नारायण सिंह भाटी
ख्यातनांव कवि-संपादक। रचनावां में स्वछन्दतावाद रो खासो प्रभाव। राजस्थानी शोध संस्थान रा संस्थापक।
ख्यातनांव कवि-संपादक। रचनावां में स्वछन्दतावाद रो खासो प्रभाव। राजस्थानी शोध संस्थान रा संस्थापक।
जन्म: 07 Aug 1930 | जोधपुर,भारत
निधन: 20 Nov 2013
राजस्थानी अर राजस्थान रा यशस्वी कवि, सफळ लेखक अर विद्वान संपादक डॉ. नारायणसिंह भाटी रो जनम सन् 1930 ईस्वी में जोधपुर जिलै रै मालूंगा गांव में हुयो। आपरै पिता रो नांव श्री कानसिंह भाटी हो। कानसिंहजी ‘जोधपुर स्टेट रेलवे’ में सीनियर स्टेशन मास्टर हा। आपरी टाबरपणै री भणाई गांव मालूंगा में ईज हुयी अर पछै आप राजस्थान री नामी हाई स्कूल चौपासनी सूं दसवीं तांई री भणाई करी। इणरै पछै आप महाराजकुमार कॉलेज सूं अेलअेल.बी. पास करी अर पी अेच.डी. री उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर सूं ली। थोड़ै दिनां तांई आप वकालत भी करी पण मन नीं लागण सूं राजस्थानी, हिन्दी, अंग्रेजी रै लूंठै साहित्यकारां री सैंग पोथ्यां लगन सूं भणी अर पछै साहित्य-रचना कानी मुड़्या।
सन् 1955 में चौपासनी शिक्षा समिति, राजस्थानी शोध संस्थान री थापना करी अर इण रा निदेसक बण्या। आपरै संपादन अर निरदेसन में राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति री घणमोली पोथ्यां अर ‘परंपरा’ जैड़ी लोकचावी पत्रिका रा अेक सौ अेक अंक निकळ्या। सोमवार, 18 अप्रेल, 1994 नै श्री भाटी रो सुरगवास होयग्यो। बै 64 बरसां रा हा।
संस्कृत रा महाकवि कालिदास री घणी लोकचावी काव्यकृति ‘मेघदूत’ रै राजस्थानी भासा में उल्थै (अनुवाद) सूं आपरी काव्य-जात्रा सरू हुयी अर उण सूं जिको जस छोटी उमर में ई मिल्यो, बो आज तांई है।
ओळूं, सांझ, दुर्गादास, जीवणधन, परमवीर, कळप, मीरां, बरसां रा डीगोड़ा डूंगर लांघिया, पतियारो, मिनख नैं समझावणो दौरो, सूखी धर री इमरत बेल आद डॉ. भाटी री काव्यकृतियां है, जिकी भांत-भांत रै विषयां, काव्य-संवेदना, चिंतन अर कवि री उत्कृष्ट काव्य-कला री साख भरै।
डॉ. नारायणसिंह भाटी नैं काव्य-सिरजणा रै सनमान सारू मोकळा पुरस्कार मिल्या। आपरी पोथी ‘बरसां रा डीगोड़ा डूंगर लांघिया’ नैं साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल्यो। इणरै अलावा महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, उदयपुर सूं ‘महाराणा कुंभा पुरस्कार’, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर सूं ‘पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार’ ई आपनैं मिल्यो। मारवाड़ी सम्मेलन, मुंबई ई आपरी कृति नैं पुरस्कृत करी। साहित्य अकादेमी, दिल्ली डॉ. नारायणसिंह भाटी पर अेक मोनोग्राफ प्रकासित कर्यो।
राजस्थानी री आधुनिक कविता रै इतिहास में डॉ. नारायणसिंह भाटी रो अेक इस्यो नांव है जिको राजस्थानी कविता नै अेक नूंवी पिछाण देवै। राजस्थानी काव्य नैं सीधै-सादै भावां अर लोकगीतां रै परम्परावाद री चालू सबदावली सूं निकाळ’र कल्पना रै आसमान में सजीलै सबदां री पांख्यां माथै बिठा’र अलौकिक पून रा झिलोरा खुवावण वाळा पैलड़ा कवि डॉ. नारायणसिंह भाटी ईज है। आंरी कविता में डिंगळ रै प्राणवान साहित्य रै मार्मिक अध्ययन री गैरी छाप है। कठै-कठै डिंगळ रै ठैठ सबदां रै प्रयोग सूं कविता में पुराणैपण री झलक जरूर आवै।
डॉ. भाटी री काव्य-माळा में सगळी भांत रा सुरंगा भाव-सुमन सरसावै, पण प्रेम अर प्रकृति रो रूप घणो चोखो अर अनोखो निजरां आवै। ‘बरसां रा डीगोड़ा डूंगर लांघिया’ में मुक्त छंद री सरस कड़ियां री लाखीणी लड़ियां है।
‘ओळूं’ में परणेतण री प्रीत रा चितहरणा चित्राम है तो ‘सांझ’ में प्रकृति रै भांत-भंतीळै भावां अर कल्पना री कोरणी सूं सुरंगी छिब उकेरी है। ‘जीवण धन’ कविता-संग्रै में सावणी तीज, बसंत, मूमल, विरह, प्रेम, पासाण-सुंदरी जैड़ी कवितावां में लाखीणो लोच अर हियै रो वालोच है। बसंत नैं कामण धरणी रै कंत-रूप में वरणतां कवि रै सबदां में हेत री हिलोर, लाज रो अंदाज अर शील रो संकोच है। ‘दुर्गादास’ जिसै अतुकांत काव्य री रचना करी है जिको नूंवै भावां, नूंवी भासा अर मुक्त छंद रो गरबीलो काव्य है। ‘मीरां’ खंडकाव्य में बगत री दसा, राजपूत संस्कृति, विषपान आद रो सांगोपांग चित्राम सरस भासा में हुयो है।
डॉ. नारायणसिंह भाटी री कवितावां में कवितावां में मध्यकालीन राजस्थानी, छंदां में दोस, मुक्त छंद रो सा’रो, अबखी भासा अर अबखाई सूं समझ में आवण वाळा बिंब, अनुप्रास-मोह, आपरै बगत री भावनावां सूं मुगत होय’र बारै आवण री तड़फ आद विसेसतावां देखण नै मिलै।