Anjas

मोहनदास जी

  • 1740-1819
  • Dhundhar

'मोहन पंथ' रा संस्थापक, अठारवीं सदी रा पुग्योड़ा महापुरुष अर संत कवि।

मोहनदास जी रौ परिचय

निधन: जयपुर,भारत

राजस्थान मांय निरगुण पंथ रै मांय निरंजनी सम्प्रदाय रै सागै ही एक मोहन पंथ रौ आगमन हुयौ।
इण पंथ री थरपना बाबा मोहनदास जी महाराज किनी। मोहनदास जी महाराज रै जलम, माता-पिता अर परिवार रै बारै में पंथ अर ग्रंथां मांय कोई जिक्र कोनी। वां रै परलोक गमन री तिथि श्रबण बदी 8 संवत् 1876 मानी जावै। जैपर में जयपाल मुंशी रै रास्ते ऊपर, नाहरगढ़ रोड़, पुराणी बस्ती मांय एक बड़ रै नीचै आपनै समाधि दिरीजी। उण ठौड़ आज भी आपरै नाम छतरी बणयौड़ी है जिण मांय आपरा पावन पगल्या धरयौड़ा है। संत मोहनदास जी आपरै जुग रा गियानी-धियानी अर पुग्यौड़ा महापुरुष हा। आप एक दार्शनिक प्रवृत्ति रा मननशील महात्मा हा।
मोहनपंथी आश्रम,सांँपली सूं छिपयौड़ी पोथी रै मुजब आपरी साहित्य साधना इण भात है- अनुभव वाणी भाग एक, अनुभव वाणी भाग दो, चितावणी, अष्टावक्र, येकादस भागवत री भासा।
आपरी बाणी नै लिपिबद्ध करणै रौ घणकरौ काम प्रसनदास जी महाराज करियौ। अर आपरी बाणी रौ संपादन महाबीर सिंह जी खोला करयो है।
इणां रै अलावा आपरी बाणी री एक हस्तलिखित पांडुलिपि राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर मांय भी है। आपरी बाणी रौ समीक्षात्मक अध्ययन अर अनुशीलन रौ काम जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर रै हिंदी विभाग री शोधार्थी 'डोली प्रजापत' आपरै शोध प्रबंध 'संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारो का अध्ययन' मांय करियो है।
मोहनदास जी ईश्वर रै सरूप रौ बखाण ऐक छप्पय छंद मांय इण भात कियौ है -

निमो निरंजन राय निमो देवन के देवा।
निराकार निरलेप नमो तूं अलख अभेवा।
निमो सरब ब्यापिक थ् ल सूक्षिम सब माही।
निमो जगत आधार निमो जगदीस गुसाईं।
सचराचर भरपूर हो घाट बाध नहीं कोय।
मोहनदास बंदन करै आनंद घन तोय॥

मोहनदास जी महाराज आपरी बाणी मांय सतगुर री महिमा रौ महताऊ बखाण करतां थका सत्संग री महिमा इण भात उकैरी है - 

भय भ्रम का होय नास साध परताप रै।
पावै ब्रह्म आनंद मिटै सब ताप रै।
उपजै उत्तम ग्यान नसै अग्यान है।
हरि हां मोहन प्रापत होय पद निरबान भी॥

संत महात्मा रै प्रताप सूं ही आदमी रै डर, भरम, काया रा कलेस मिट जावै अर उत्तम ग्यान रूपी आंनद री प्राप्ति होवै है। मोहनदास जी महाराज आपरी बाणी मांय आदमी ने हमेसा ईश्वर रौ ध्यान लगाणै अर खुद रै हिरदै मांय ईश्वर रै प्रति अटूट आस्था अर श्रद्धा राखणै री बात समझाई है। मिनख नै हमेसा मोह, माया, तृष्णा, ढोंग, पाखंड, मद, अंहकार, लोभ-लालच अर राग-द्वैस सूं अळगौ रैवण अर संतोषी जीवण जीणै रौ उपदेस दियौ है। वै इण चकाचौंध अर भौतिक वाद सूं अळगौ रैवण री सीख देवतां थकां खुद रै सरूप री पहचाण करणै री सीख दी। रामस्नेही संप्रदाय रै सन्त महात्मावां री बाणी री भांत आपरी बाणी भी कई सारा अंगां मांय रचियौड़ी है