सिरैनांव कवि-गीतकार।
ऊँघ भरी छ खेत क
घूघरा
छणीकस्यां
दबी चीखाँ अर बरसतो पाणी
भाटा को आदमी
कस्यो यो जमानो देखो
पहर चढ़याँ उठ्ठै थोडा अंलसावै खटिया पै