सिंवरो उमति को राव, सांई राजा मन जपियै।

दे करि दिल को साच, जमले रळि मिलियै।

चरियौ चरण जोग्य, अवचर परहरियौ।

अवचरि वढेला रोग, आफरि नां मरियो।

ज्यौं ज्यों फेस म्हारो साम्य, आगे आगें पग धरियो।

देखि हरीड़ा बाग, चोरी बंदा नां करियौ।

चोरी है अणराग, जीवड़ा भै डरियौ।

ठाढो वेळु की रेत, झबुकैला पवण घणां।

वरसो आजो को राति, काल्हो का धौंस घंणां।

सायर लहरिया लेह, ऊंटो देखि झरां।

संवळ छो जां पासि, सेइ मोमिण पार लंघ्या।

संबळ बिहुंणा वीर, झुरवै तीर खड्या।

झुरवै राति धौंस, घायलां ज्यों फुरहै।

अगर चंदण की नाव, बेड़ो म्हारे सांम्य सज्यो।

बोले समसदीन, खेवट पारि लंघ्यों॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी , विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • सिरजक : समसदीन ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : बी. आर. पब्लिकेशन्स 6, प्रिटोरिया स्ट्रीट कलकत्ता -16 ,
  • संस्करण : प्रथम
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