सुरता सुणि एक भेद सुणाऊं। करण पटौ केवल रस पाऊं॥

जिहिं रस पीयां राम भणीजै। निरति पड़्यां थैं कांठौ दीजै॥

गिरही नैं गिरही उपदेसै। ठगण मतै क्यूं खासा खेसै॥

दाधा नैं जे मंत्रै दाधौ। औरां छोड़ै आपण बाधौ॥

अवसि जु हाथां ऊतरी, पावक पैठौ फूसि।

पाणी पाखै क्यूं बुझै, ग्यान गयो यूं रूसि॥

पीछै रहिया रोझ अग्यानी। जिहिं ज्यूं कहीं तहीं त्यूं मानी॥

पुखता होइ तौ फेरे पाछी। अरथ बिना क्यूं लागै आछी॥

भूला नैं जे पूछै भूलौ। गांइ किसै जासी जिणि फूलौ॥

रीता मैंले रीता वोजै। खाक पड़ी मुखि यूंही खोजै॥

पाखंडि प्रिथमी धीजिगई, एक बडौ हैरान।

सूनां सोधी का नहीं, किहिं गुणि बोड़ै कान॥

ब्यौरा बिण ले बोडै आगै। थाकि रह्यौ पणि पहल थाघै॥

घरि ऊणां बाहरि परमोधै। निरसौ फिरि फिरि सरसा सोधै॥

मन जाणै जे मोटो मानैं। भारी भूख पड़ै क्यूं पानैं॥

नवता देखि नवैं जे औरा। तौ पालै परिवार दौरा॥

जबही मिरघ मारियौ, तब ही पड़्यौ दुकाल।

मंछौ कारणि मांडियौ, कीर कुबधी जाल॥

आक पलासी अड़वा घातैं। जाड़ी जिग दै जीव निपातै॥

बधिक बिरति ले चेला चांटी। अपस सबुधि यूं बिहचै बांटी॥

कारिज सरिया कांवड़ि टेरी। एक लंगूरौ सतराह सेरी॥

इहिं बिधि छोड़ी जाइ छापी। दोहरा टालैं दुख सरापी॥

हारि गया हरि थैं बिमुख, कुपह कुटुंब की चीत।

सिख साखा सारै हुवा, माधौ कियौ मीत॥

देव दिहाड़ी दोसत दूजा। पूगी आस चढी जब पूजा॥

मुसि मुसि तुरत करै मुहु मीठौ। भौ भारी आगौ किनि दीठौ॥

बाट पाड़ि बेसासै द्रोही। न्याव निगरि लेसी हरि वोही॥

कूबै बाहि बरत जे बाढै। तौ ऊतर दे आघौ किन काढै॥

सौ दोखां ऐकैहड़ै, नानीड़ौ हथियार।

कूकरि क्यूं छूटै नहीं, निपटि जाणै सार॥

त्रिस्ना पीड़ आपणी तोड़ै। सो न्याइ पराई पाटी छोड़ै॥

बिचरै बैद बिथा भौ भागौ। नीलज नाड़ी निरखण लागौ॥

सगै सरीर ओत नहिं ओसै। बादि बिराणी खोसै॥

सदा दई नैं साच पियारौ। लालचि लागि खांड गुड़ खारौ॥

जन थैं जाचिक व्है गया, कुलणि भागी काम।

औरां की तौ क्यूं नहीं, ते क्यूं कहिसे राम॥

श्रीपति छाड़ि स्वादि चित दीयौ। कदरि जाणि कीए लीयौ॥

गोरू गति लहै करता की। नांव समंद सबै बिचि थाकी॥

पार पहुंचै हाथ पसारै। आपण तिरै औरां तारै॥

भौजल पैठा भूछ अफेरू। बेऊ बूडा अधम अतेरू॥

पछिताणा पंथ को नहीं, प्रथमि बांधी पाज।

फाटै डंडै डूबिसी, जिनि गह्यौ राम जिहाज॥

जदि तदि जासी ताला बेली। दुंद भरोसै दुनिया दोली॥

अंध लकुटिया गहिले अंधा। समझि नहीं पणि सूणा कंधा॥

भेडां वोट भेड नित खाधी। भेख भलो पण भगति साधी॥

मूंसा सरणि छूटै मूंसौ। सर्प गिलण कौ यौ ही हूसौ॥

गोरी पीड़ा बीकणैं, गुर गम कियौ गाह।

निरभै पद नेड़ौ नहीं, भावै तेती जाह॥

बातौं ही बूहा बैरागी। अंतरि आगि अणेरी लागी॥

उरै कहण कूं एकाएकी। सेन्या भाइ सरीरी सेकी॥

हरड़ै हरड़ै फिरिया हूंछै। ओछी चाल अधूरा मूछै॥

जिहि औताकि बघेरै आदर। सिर कूटै ज्यूं खूंमी चादर॥

स्वांग काछि सोरहा हुवा, सुख चित दीन्हा पेटि।

जांता जांता द्यूंहड़ा, निपजण लागी नेटि॥

काधैं खड़िया काख अधारी। मांगण मत्या बगल मैं मारी॥

भूचै भाव दुनी कौ फिरिया। चाल अचोखी चीचड़ टिरिया॥

परचै हीण हुसांई मोडा। देखा देखी होड़ी होडा॥

काग आडि की कथा बिचारै। कलि का कीट किसी झख मारै॥

दुरगंधि द्वारै दीजिसी, ले जासी जमदूत।

तब हरदास तमासगिर, बिच के बेसौं पूत॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै