तनक हरि ! चितवौ जी मोरी ओर॥
हम चितवत, तुम चितवत नांही, दिल के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितवनि तुमरी, और न दूजी दौर।
तुम-से हमकूं कब रे मिलोगे, हम-सी लाख-करोर।
ऊभी-ठाढीअरज करत हूं, अरज करत भयो भोर।
मीरां के प्रभु हरि अविनासी! देस्यूं प्राण अंकोर॥