निसदिन तुम ही तुम कुं सिंवरूं, नहीं विसरूं नहीं विसरूं।

आदि अंत मध संग त्मारौ, तातै नहीं विसारूं।

अरूप अनंत अखंड के ऊपर, वार वार तन डारूं।

तुमसा मेरे और दाता, सब जग देख्या जोई।

हेरत हेरत दूर जांणां, हर हिरदा में होई।

ग्यान अदोत भया घट मांही, साधो भाई अस्तन भाखूं।

मूलदास जन जांसूं मिलिया, तुरीयातीत कहै ताकूं॥

स्रोत
  • पोथी : श्री मूलदास जी की अनुभव(अनभै) बाणी ,
  • सिरजक : संत मूलदास जी ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सींथल , बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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