चौरासी में दुख घणौ, जनम-जनम दुख पाय।
भुगत-भुगत नर मूलदास, जुग च्यारूं वरताय।
चौरासी भुगतायकर मिनखादेही देत।
रामंनाम को मूलदास, मूरख लेवे न चेत।
बांधे पोट विकार की, पहली कर्म कमाय।
मूलदास सोई तिरे, जो हरि सरणे आय॥