सुदामा कूं देखत राम हँसे।

फाटी फूलड़ियां, पांव उभाणै, चलतां चरण घसे।

बाळपणै का मीत सुदामा, अब क्यूं दूर बसे॥

कहा भावज ने भेंट पठायी, तांदुल तीन पसै।

कित गयी प्रभु! मोरी टूटी टपरिया, हीरा-मोती-लाल कसे॥

कित गयी प्रभु! मोरी गउअ बछिया, द्वारा बिच हसती फँसे।

मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सरणै तोरे बसे॥

स्रोत
  • पोथी : मीरां मुक्तावली ,
  • सिरजक : मीरांबाई ,
  • संपादक : नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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