संतौ अद्भुत खेल अगाधा।
सो खेलै कोई येक साधा॥
जो गगन गालि को सोधै, सो पंचनि को परमोधै।
जो बाइ बैल गहि लादै, सो बित बापि न दादै।
जो तेज माहिं तृण राखै, सो महिमा कौन सु भाखै।
जो पाणी मैं घृत काढ़ै, सो मति सबतैं बाढ़ै।
धर पृथ्वी पुणि दूजै, सी रज्जब रामति बूझै॥