जीव जुदा जगदीस मैं, सो जनि जाना।
अंतरि ही अंतर रह्या, माया मनमाना॥
ज्यूं आखिर परचै आंखि द्वै, पै अरथ न आवै।
त्यूं प्राणी प्यंडहि रचे, पति परख न पावै॥
सुन्नि सरूपी राम हैं, ओंकार सु आभा।
चित चातृग अटके तहां, बित बूंद सु लाभा॥
प्रान प्यंड रस पोखिया, पिया पंचू भाया।
रज्जब कीड़ै कड़ब कै, कण स्वाद न पाया॥