संतौ आई बात बिगोवै॥
कोटि जनम का गमैं कमाया, एक निसा सो सोवै॥
मंदिर माहिं अंधारै आवै, सूता जाणि सयाणी।
पड़्या अचेत आगिला ऊंघण, राति नगर की राणी॥
टाटी भींति बगारा कीया, सबही दीसै सेरा।
तिणि खणि खोदि किया घर रीता, जीव संताया मेरा॥
सतगुर सबळ साहसी जागै, तौ कोठी कोल न फोड़ै।
सबद अनाहद तूरौ बावै, निगुरी की नस तोड़ै॥
इहिं बिधि कोल कडूंबौ मार्यौ, को हुसियार न हूवा।
कह हरदास अग्यानी आगै, राम बिमुख जग मूवा॥