अवधू अैसा खेल बिचारी। ताथैं एक अचंभा भारी॥
गाडर रोटी लीयां रहती, काग कहूं ते भागी।
सतगुरि दोऊ मारि रळाई, गंदा की मति जागी॥
कूकर कांसौ मुहि करि चाल्यौ, धरती धर्यौ न जाई।
गेडी ज्ञान धमेडी बांसै, इहि बिधि लियौ छुडाई॥
आठ अजा ले ऊखळि बांधी, खीच दिहाडै खाती।
चारणहारौ चतुर बमेकी, हरि भजि सुख मैं सांती॥
बूंट बिलाई घी कौं तोड़ै, दूध अछूतौ चाटै।
कह हरदास निसांक नबेड़ौ, राम बिना सब साटै॥