पिय जिय पीर कछु पहिचान।

चीर सबके हरत कहा, चित हरे इहिं मुसक्यान।

सीत बस हम, जल मगन, तन नगन, बिनति मान।

नाहिं चहियतु तुम्हैं ऐसी, देहु अंबर आन।

हास रस आनंद कीनौं, चतुर ठगई ठान।

प्रीति बाढ़ी परसपर, बर दयो हरि सुखदान।

स्याम कैं मन गउर तन छबि बसी कच लपटान।

रहे ‘नागरिदास’ के जिय बसन-चोर सुजान॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
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