पहले दुख पीछे सुख होइ।

ताको सहज कहै जन कोई॥

ज्यूं जीभहिं पैठावै पाठ, अहनिसि दुख अंतरगति गाठ।

पढ़े पाठ पीछे सुख जाणि, सहजै पड़ै जीभ कौं बाणि॥

ज्यूं कुरंग कसणी मैं आणि, दगध्यूं तजै बाहिली बाणि।

संकट पड़ि मृग मनिषा मेल, पीछे भया सहज का खेल॥

जैसी बिपति बाज सिर होइ, तिलि तिलि त्रास रहै मिलि सोइ।

पहलै कठिन कसौटी खाइ, पीछे मुकता आवै जाइ॥

मन इंद्री ऐसी बिधि साधि, सबसौं तोरि नांव बिच बांधि।

रज्जब संत असहज समाइ, पीछे मिलै सहजै कौं जाइ॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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