कहा करै माणस मन माड॥
गए इक्यारथ दिवस आगिले, राम बिना जे लाडे लाड॥
कुटुंब कथा कहि भरम दिढायौ, लोक बेद बिधि बांधी आड।
सतगुर सीख सुनी अंतरगति, सबहिन कै सिरि मारी फाड॥
पड़ि पहिलोल अपरता पावस, ऊबटपाट भरे भुइ नाड।
पंडित पाढ इसौ परचा सुध, ऊजड़ खूह भुसी करि भाड॥
जाति बरण कुल भेद भाकसी, तामैं रहत गए गलि हाड।
अब हरदास मुक्त भजि माधव, थिर चित चूंप आपणी चाड॥