माधौ किसौ मौंह ले मिलण आऊं, अधिक तनि अपराध।

ताप त्रिष्णा लुबधि लागी, संगति त्यागी साध॥

नैंन जित तित पाप निरखै, श्रवण सब्द अकाज।

मन मनोरथ पाहि पसरी, गलित गुण गई लाज॥

सुत कलित कुल पासि पग मैं, सुरति स्वाद सु लोभ।

रसण रुचि दिन राति दगधै, सकल बिधि सुख सोभ॥

जठर पसु गति पूरि दह दिसि, पुहपु परिमल नास।

काम अनंत कुसंग इंद्री, दुखित व्है दस मास॥

भगति निधि भगवान भौ रिप, भजन सु सुदिढ्ढ सुभाइ।

एकरस हरदास हरि पद, प्रगट प्रफुलित गाइ॥

स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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