सखी नीर भरिबा नहिं जाऊं॥

गोब्यंदौ मंझि गंगा लड़ै है, बाट की घाट अंग आमड़ै है॥

सुरसती सति भाखै सही, बहै दूरि बहावै।

मंझि का देव देख्या हरी, तहां मो मन जावै॥

जागती जोति जाहर नवी, जटा कुंडला जोगी।

गहर जल देखि गोरी डरी, मुकत माधवा भोगी॥

भाव तौ जाणि भागीरथी, रही साध व्है सूधी।

काल की भसमी निहिकामना साधी दया करि दूधी॥

ऊजली धौल उत्तर दिसा, धसी निरमली धारा।

दुखित जन देखि कहत हरदास, दुसरै करण पाप भौ पारा॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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