आली! म्हांनै लागै विंद्रावन नीको।
घर-घर तुलसी-ठाकुर-पूजा, दरसण गोविंदजी को॥
निरमळ नीर बहत जमना में, भोजन दूध-दही को।
रतन-सिंघासण आप बिराजै, मुगट धर्यो तुलसी को॥
कुंजन-कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको॥