हूं बूझूं पंडित जोसी!
म्हांरो राम-मिलण कद होसी?
म्हांरी आंख फरूकै बांयी।
म्हांनै साध मिलै कै सांई॥
म्हांरा पिव परदेसां छाया।
किण बैरण ने बिलमाया॥
म्हांरी रोइ-रोइ अंखिया राती।
म्हारो तन दिवलो मन बाती॥
म्हांरा झुर-झुर पिंजर खीना।
जैसे जल बिच तळफै मीना॥
उड-उड रे काळा कागा!
म्हांरै पिया नै घणा दिन लागा॥
बाई मीरां विरह वसूरै।
म्हारी आस गुसइयां पूरै॥