जब तें मोहि नंदनंदन दृष्टि पर्‌यो माई।

तबतैं परलोक लोक, कछु नां सुहाई॥

मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहै।

केसर को तिलक भाल, तीन लोक मोहै॥

कुंडल की अलक-झलक, कपोलन पर छाई।

मानो मीन सरवर तजि, मकर मिलन आई॥

भृकुटि कुटिल चपल नयन, चितवन से टौना।

खंजन अरु मधुप मीन, मोहै मृग-छौना॥

अधर बिम्ब अरुण नयन, मधुर मंद हांसी।

दसन दमक दाड़िम द्युति, दमकै चपला-सी॥

कंबु कंठ भुज विसाल, ग्रीव तीन रेखा।

नटवर को भेष मानु, सकल गुण विसेखा॥

छुद्र घंट किंकिनी, अनूप धुन सुहाई।

गिरधर के अंग-अंग, मीरां बलि जाई॥

स्रोत
  • पोथी : मीरा पदावली ,
  • सिरजक : मीराबाई ,
  • संपादक : डॉ. शंभुसिंह मनोहर ,
  • प्रकाशक : पंचशीेल प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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