संतौ ऐसा यहु आचारा।
पाप अनेक करै पूजा मै, हिरदै नहीं बिचारा।
चींटी दस चौके मै मारै, घुण दस हांडी माहीं।
चाकी चूल्है जीव मरै जो, सो समझै कछु नाहीं।
पाती फूल सदा ही तोड़ै, पूजण कौ पाषाणा।
पचन पतंगै हूहिं आरती, हिरदै नहीं विनाणा।
सारे जनमि जीव संघारै, यही खोटै खट कर्मा।
पाप परचंड चढै सिर ऊपरि, नांव कहावै धर्मा।
आप दुखी औरौं दुख दायिक, अंतरि चाम न जान्या
जन रज्जब दुख करै दृष्टि बिन, बाहर पाखंड ठान्या॥