हे री मैं तो दरद दिवाणी-होइ, म्हारो दरद जाणै कोय॥

घाइल की गति घाइल जाणै, की जिण लाई होइ।

जौहरि की गति जौहरि जाणै, की जिण जौहरि होइ॥

सूळी ऊपर सेज हमारी, किस विध सोवणा होइ।

गगन-मंडळ पै सेज पिया की, किस विध मिलणा होइ॥

दरद की मारी वन-वन डोलूं, वैद मिल्या नहिं कोइ।

मीरां की प्रभु पीर मिटैगी, जद वैद सांवरियो होइ॥

स्रोत
  • पोथी : मीरा मुक्तावली ,
  • सिरजक : मीरांबाई ,
  • संपादक : नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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