हे भईया मेरो मोहन संगड़ो न छाड़ै, पीया संग न छाड़ै।
मैं आऊं मेरी माई सुं मिलन कुं, पीयौजी मिलै पंथ आड़ै।
कैसे प्रीत करूं ये माई, तुम सुं राच रही संग गाढ़ै।
सज सिणगार चलूं मोहन संग, मना न उतारै चित चाढ़ै।
नवली प्रीत लगी मोहन सुं, नित म्हारौ नवलौ लाडै।
मूलदास जन पास मोहन की, रहै जुग-जुग प्रीत वाढै॥