सुणलौ गुरु गम ग्यान निहारी।
गुरु किरपा गोविंद गत जाणौ, आवै भरोसौ भारी॥टेर॥
ग्यानी गुरु भव दुख सगळा मेटै, अग्यानी आप उळझावै।
मंगतां आगै मंगता मांगै, भूल्या औरां नैं भूलावै॥
गुरु बिना ग्यान ध्यान नईं पावै, संसय कौण मिटावै।
सरणै आयां री संका सह मेटै, निरभै मुगति पावै॥
केई गुरु इसा आरंभ कर, भला ढूंग पाखंड चलावै।
पेरै भेख भरम रा भांडा, यूं कांईं मुगति पावै॥
भेदी जकौ भरमै नईं कदै नीं पाखंड बणावै।
वेद सास्त्र परचै करिया, भळै न पाछौ आवै॥
आपो नईं खोजै औरां नैं परमोदै, भूल्या नै भरमावै।
जळ डूबै जळ गह धारा, दूणौ पींदै जावै॥
अग्यानी गुरु नईं कीजै, नहचै नाव डुबोवै।
ज्यूं सांग बहरूपिया बाजी, यूं भूल्या भेख बणावै॥
सिमरथ गुरु सांसौ सब मेटै, निजमन होय ध्यावै।
लट भंवरां ज्यूं गत होई जाई, होय भंवर उड़ जावै॥
घर-घर में चेला कर लेवै, स्वारथ लोभ लगावै।
आसा लागी आसरौ बांधै, चादर धोती मंगावै॥
गुरु गोविंद एक कर जाणौ, चवदह लोक गुरु सम नांई।
गुरु महिमा बरणी न जावै, वेद सास्त्र सगळा गावै॥
बालीनाथ गुरु सेन बताई, निज धरम रै मांही।
अजमल सुत रांमदे भाखै, अपणै में आप समाही॥