दिलदार मेरे सइयाँ, ताकि बार-बार बलि जइया।

सब घट अंदर सब से न्यारे, सब में हिलमिल रइया।

सब सुख दाता सब रस माता, सब सुख के तुम लइया॥

सब सूरत में नूर तुम्हारा, तुज बिन ख़ाक मिलइया।

आत्माराम तुमारी सरणै, तुमरी लगन लगइया॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' रामद्वारा, इंद्रगढ़ -कोटा (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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