दिलदार मेरे प्यारे, तेरि सूरति ऊपरि वारे।

सब सुखदायक सकल सिरोमणि, अगणित अधम उधारे।

हम अवगुन तुम कोटि निवारे, कहा कहूँ गुन थारे॥

आसिक कू तुम लागत नीके, कहा जाणै जगत विचारे।

आत्माराम आसिक तुमारा, राखो कदम तुमारे॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' रामद्वारा, इंद्रगढ़ -कोटा (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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