राम राइ राखि लेउ जन तेरा, कोई नाहिं बुधि बल मेरा।
मन मैमंत फिरै माया संगि, घरि आवै नहिं घेरा॥
पंच प्रपंच प्राण महिं पैठे, घर ही मैं घर घेरा।
निस दिन निमष होत नहिं न्यारे, देइ रहे दिल डेरा॥
नाहरि बिघन बहुत बिधि बैठे, परकीरति बिच पेरा।
सुनहु पुकार सुरति कर सांई, दुख दीरघ बहुतेरा॥
ये सब मार मिहरि सौं भाजै, तब जाइ होइ निबेरा।
आन उपाय वोत नहिं जिव कौ, जन रज्जब सब हेरा॥