राम राइ महा कठिन यहु माया।

जिनि मोहिं सकल जग खाया॥

इन माया ब्रह्मा से मोहे, संकर सा अटकाया।

महा बली सिध साधिक मारे, तिनका मान गिराया॥

इन माया षट दरसनि खाये, बातनि जग बौराया।

छल बल सहित चतुर जन चक्रित, तिनका कछु बसाया॥

मारे बहुत नांव सूं न्यारे, जिनि यासों मन लाया।

रज्जब मुकति भये माया सों, जोगहिं राम छुड़ाया॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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