मैं हरी बिन क्यों जिऊं री माय॥

पिय कारन बौरी भई जस काठहि घुन साय।

औषध मूल संचरै, मोही लागो बौराय॥

कमठ दादुर वसत महं, जलहि तें उपजाय।

मीन जल के बिछुरे तन, तलफि के मरि जाय॥

पिह ढूँढ़न वन वन गई, कहु मुरली धुनि पाय।

मीरा के प्रभु लाल गिरधर, मिली गये मिलि गये सुखदाय॥

स्रोत
  • पोथी : मीरा और उनकी प्रेम वाणी ,
  • सिरजक : मीराबाई
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