जब लग ही जग को सुख पागै।

तब लगि जिय हरि भक्त संग कौं रंग नहीं कछु लागै।

गृह व्योहार खेल गुड़ियन को जब लगि ही जिय भावै।

तब नव जोबन व्है मदिरामय तिय पिय कंठ लगावै।

तिन चाख्यौ अति स्वाद अलौकिक स्याम मधुर रस पाक।

‘नागरिदास’ लगत जाकौं फिरि और वस्तु सब आक॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै