हां रे बीरा संसार अथग जळ भरियौ,

नीर नजर नईं आवै।

संसार अथग जळ भरियौ रे, म्हारा लाल॥

हां रे बीरा सत री नाव गुरु खेवटिया,

बैठी पार हो जावे म्हारा लाल।

डूबै जिकै नर करणी रा हीणा रे,

बिन विश्वास दुःख पावै म्हारा लाल॥

हां रे बीरा तीन पांच एकण घर लावै,

धीरज धजा लगावै म्हारा लाल।

नेम धरम मल्लाह दोय आछा रे,

समझ नै नाव हलावै म्हारा लाल॥

हां रे बीरा हालै नाव समंद रै कांठै,

सत रौ पंथ बुवारै म्हारा लाल।

चूका जिकै जळ बिच डूबा रे,

फेर ऊंचा नई आवै म्हारा लाल॥

हां रे बीरा जग सूं तार उतारै पार,

वै नर संत बाजै म्हारा लाल।

कैवै रामदै साचा संत अभय हुय जावै,

जम सूं नई डरै म्हारा लाल॥

स्रोत
  • पोथी : बाबै की वांणी ,
  • सिरजक : प्रो.(डॉ.) सोनाराम बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
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