अवधू सूतां कौ धन छीजै रै।

नींद करै मति बैठो राखी, चोर चहूघां लीजै रे॥

राखण मतै सु राम भूलै, भूलै तौ बित हारै।

इहिं औसर जे चूकौ अबकै, तौ जामैं मरै झख मारै॥

ऊंघि ऊंघि यूंही जग खीणा, जागि किनही जोया।

घरि भूला बाहरि सब ढूंढै, आपा पर मैं खोया॥

मुहर पदारथ हीरा मोती, हरि भजि गाठि संभाळै।

कह हरदास काल का डर की, माणस मींच जु टाळै॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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