अवधू बैठां का गति नाहीं।

भजन बिमुख मति जाणैं छूटण, पसरि सोवै घर माहीं॥

चली जमाति साथ के आगै, तूं कांइ पाछै धीरा।

बिन रघुनाथ नहीं को तेरा, और सहाई भीरा॥

जिन सूं प्रीति करै माधौ तजि, तिनमैं कहि को तेरा।

जोगी बेटा कदे ऊंघै, जाकै बाट बसेरा॥

जब लग सुख चाहै देही कूं, तब लग सातौं काची।

आइस ऊठि देखै घर मैं, रामचरण निधि साची॥

नौ घर मांगि कुरगटी घायौ, इनहीं सूं रुचि मानी।

कह हरदास चलै जौ दसवै, तौ सति महमां जाणी॥

स्रोत
  • पोथी : हरदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत हरदास ,
  • संपादक : बृजेन्द्र कुमार सिंघल ,
  • प्रकाशक : धारिका पब्लिकेशन्स, दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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