ऐसे नहीं धीजिए, सठन प्रीति कीजिए।

थाह बताय डबौवे ऊंडै, पीछै ही पछतीजिए।

मुख के मीठे अंतर चीठे, उर ले दुख ही दहीजिए॥

ऐसे को संग कबहूँ कीजे, हेत देखि ही पवीजिए।

आत्माराम सठन के संग ते, बार-बार तन छीजिए॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी श्री रूपदासजी 'अवधूत' की अनुभव - वाणी ,
  • संपादक : ब्रजेन्द कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमाराम कोमलराम 'रामस्नेही' रामद्वारा, इंद्रगढ़ -कोटा (राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम
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