ऐसे नहीं धीजिए, सठन प्रीति न कीजिए।
थाह बताय डबौवे ऊंडै, पीछै ही पछतीजिए।
मुख के मीठे अंतर चीठे, उर ले दुख ही दहीजिए॥
ऐसे को संग कबहूँ न कीजे, हेत देखि ही पवीजिए।
आत्माराम सठन के संग ते, बार-बार तन छीजिए॥