मंगलाचरण
(दूहा)
इक रद विदिया ईसरी, अजी अजी अचळेस।
साथ आय संवारजौ, काव्य सुकोमळ केस॥
गुरू वंदना
(सोरठा)
निवंणु नाक निमाड़, भांण रूपी भंवरजी।
झिळमिळ साहित झाड़, जिण रै सानिध जलमियौ॥
अथ दयाल माया द्वादसी
तारणहारा तुझ मतै, जांणी हुवै अजांण।
पत्थर नै पारस करै, पारस करै पखांण॥
जग घड़्यो हरि जीव रे, जीव तजै तुझ हेत।
भोगी छड दे भाग पै, दरस जोग नै देत॥
जाळौ थारो जगतपति, अपणै समझ न आत।
तार्या कइ नर बात सूं, तार्या कइ धर लात॥
वामण बण्यों विसवपति, बली बूडावण बळ।
दिवसत तार्यौ कर दया, खळ तार्यौ कर छळ॥
नर ऊबारण नरक सूं, दियौ हरी भय दोख।
भय बिन नर हरि ना भजै, हरि बिन मिळै न मोख॥
जांण न पायौ सकळ जग, परभु नांम परताप।
वचनख भी जांणै वही, जो जांणै जड़जात॥
सइ गळत नंह कह सकै, अेक रखी आधार।
अेकह उर अदतार दै, अेकह उर दातार॥
चकवौ-चकवी चोळ दै, पैलै सूं तिय पौर।
घन गुंजावै घौर सूं, घट री मेटण घौर॥
मेघ झुरावै मुलक रा, नैण झड़ावै नीर।
गाजत कर दै गळगळा, नैणों पूछण नीर॥
मन दीना अणमाप रा, नी लागै अनुमांन।
पेट दिया इक माप रा, धोबो मावै धांन॥
धरणीपत नै धारणौ, खरै भाग री खांण।
धर पूजीजै धारतों, भाटो बण भगवांण॥
माया समझण सिध मुनी, सोचत मन संकात।
परविण केवै प्राणियां, अपणी की औकात॥