इम सुणि बादिल बोलीउ, दूठ महा दुरदंत।

जाणि कि गयवर गाजीउ, अतुल बली एकंत॥

“सुणि बाबा!” बादिल कहइ, सुभटां सुं कुण कांम?

सुभट सहू सूए रहउ, करिस्युं हुं कांम॥

काका! थे कांइं खलभलउ, अंगि धरउ उताप।

तउ हुं बादिल ताहरउ, सयल हरूं संताप॥

पदमिणि अंगणि पग दीउ, पवित्र हूउ मुझ गेह।

महलि पधारउ माउली, दुख धरउ निज देहि॥

आलिम भांजुं एकलउ, जउ वांसइ जगदीस।

तउ हुं बादिल बहसीउ, जउ आणुं अवनीस॥

बीडउ झालिउ बादिलइ, बोलइ इम बलवंत।

आलिम गंजी आप बलि, आणुं नृप एकंत॥

सुभट सहू सूए रहउ, सुभटाँसुं कुण कांम?

सगला, हुं एकलउ, निपट करूं निज नांम॥

बादिल बोलइ-पदमिणी, मनि करे ऊचाट।

तउ हुं गाजण जनमीउ, जउ भंजुं गज-थाट॥

अरि-दल गंजुं एकलउ, भंजुं नृपनी भीड।

राम काजि हणमति कीउ, तिम टाळुं तुझ पीड॥

सत्ति! तुहारइ साँमिणी, मली महादल मांन।

गढ माहे आणुं घरे, रतनसेन राजांन॥

जीह सडउ ते जण तणी, दाखिउ जिणि दाउ।

पदमिणि साटइ पालटे, आणेशाँ घरि राउ॥

लूण उतारइ पदमिणी, वाला वादिल अंगि।

बिरद बुलावे बादिला, इम जंपइ कणयंगि॥

गोरउ हिव अति गहगहिउ, सूरिम चडी सरीर।

कायर पूछ्या कंपवइ, धीर वधारइ धीर॥

घरे पधारउ पदमिणी, आरति करउ कांइ।

बादिल बोल्या बोलडा, ते झूठा नवि थाइ॥

सूर पश्चिम ऊगमइ, मेरु कंपइ वाइ।

सापुरस बोल्या नवि टलइ, मूवाँ अवर विहाइ॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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