खतरौ घणौ है दुणिया माय

क्षण में मनख पलटी खाय।

देख'र देख'र पग धरणो अठै

नितौ भाग जावै लो काटों पग माय।

देख भाल'र पछै बनावौ सखो

जदयाँ सवाद सुखां रौ चखौ।

अबाणूं रिपया री पूछ सब दूर

संसकार होग्या सगला चूर।

बीरौ ही बीरा रौ गलौ देवै चीर

मण मे को'णी रत्ती भर भी धीर।

स्रोत
  • सिरजक : शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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