वै इतियास में गमगा

इतियास री पसर्‌योड़ी बावां री काळी गुफावां में—

म्हैं वांने जाणतौ हौ

वै आपसरी बातां बिचारां जिदता करता

हाथ मिळाता, मुळक बिछाता

खुदरी मुळकां रा फूल खुद रा टाबरां नै पैराता

दुख-सुख झेल्यां जाता

म्हैं वां सू फेरू मिळूं, खुद रौ अखबार लेतां

हाल भी वै म्हारा दोस्त है

पण सिरफ सबद सिरफ संख्यांवां

जिकां रै सागै हजार दिन अर दस साल

म्हैं कई टेबल माथै खायौ पीयौ

सिगरेटां फूंकी

खुद रै टाबरां रा नांव तै करिया

जिकां नै म्हैं म्हारी कवितावां सुणाई

जिकां रा म्हारी मां लाडकोड करिया—

वै म्हारा दोस्त हा

म्है मिळता, भांत-भांत री बातां करता

इतियास री पसर्‌योड़ी बावां में वै गुम व्हैगा

अर बणगा बात

म्हारै देस री बात म्हारै देस री जात...

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : मालेक हद्दाद ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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