लाल होठ उत्ता लाल कोनी

जित्ता मरियोड़ा सिपाई सूं चूमियोड़ा लोही सिचिया भाटा

इण पवीत प्रेम सांम्ही पांणी भरै

संसार रै प्रेमियां रौ हेत,

म्हारी मरवण! थारै बदळै फूटियोड़ी आंख्यां सांम्ही देखूं

तौ मगसी पड़ जावै थारै मिरगानैणां री जोत।

थारौ नाजुक बदन इत्तौ आवेग सूं कोनी लैरावै

जित्ता आवेग सूं किरच पोयोड़ी सिपाई री देह,

उण जगां लुटती अर अेंठीजती

जठै स्यात भगवांन नै पूरण प्रेम

वैनै कोनी कर दै मौत री छेली निबळता में अेकाकार।

थारा कंठ उत्ता सुरीला कोनी

बांठकां रै बंधियोड़ा अडांणां माथै गूंजती

नितरियोड़ी सिंझा जैड़ी निरमळ

थारी मीठी राग रौ संगीत उत्तौ मीठौ कोनी

जित्तौ उण कंठां रौ, जिकां नै अबै कोई कोनी सुणै

अर माटी बूर दियौ है जिण रा खांसता भौळा मूंडा नै।

हिवड़ा! थूं कदैई इत्तौ तपियोड़ी, भरपूर कै चवड़ौ कोनी हौ,

जित्तौ गोळी लागण सूं चवड़ौ हुयोड़ी सिपाई रौ काळजौ

अर भलांई थांरा हाथ केसर जैड़ा पीळा व्है

इदका पीळा व्है वै हाथ

जिका थांरा सलीब नै ऊंचायां झाळां अर आंधियां रै पार जावै

रोवौ, थे फगत रोय सकौ,

क्यंकै थै वैनै परस कोनी सकौ।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : विल्फ्रेड ओवेन ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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