इण भांत मरजै

कै कोई निसांण

कोई छीया लारै नीं रैवै

छीया रौ चेतौ भी लारै नीं रैवै

किणीं भी मानखै रै मन, मगज अर चामड़ी में

अैड़ौ समूदौ मरजै

कै किणीं दिन जे कोई

थारौ नांव किणीं पांनै माथै देखै

तौ पूछै— ‘औ कुण हौ?’...

इण सूं भी ज़्यादा साबताई सूं मरजै

कै नांव भी नीं रैवै।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : मैनुअल बंदेइरा ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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